आओ चलें फिर से उस छोटे से शहर में
जहां अपना सा लगता था हर इक लम्हा।
सोसायटी नहीं वहां मोहल्ले होते थे
पड़ोसी भी परिवार का हिस्सा हुआ करते थे।।
तेल चीनी का लेन देन होता था
हर त्योहार संग मनाया जाता था।
जब पड़ती थी किसी एक पर कोई विपदा
पूरा शहर पूरी ज़ोर लगा कर साथ खड़ा हुआ करता था।।
दोस्तों के सानिध्य में अलग सी मस्ती हुआ करती थी
मोबाइल की जगह किताबें हाथ में होती थी।
खेल कूद भी निराले ही थे हमारे
खोखो कबड्डी और लुडो थे पब जी और पोकीमॉन हमारे।।
याद है वो ज़माना आज भी
जब दस घर मिला कर एक टीवी हुआ करता था।
आज की ये दुनिया भी देखी
जब हर कमरा एक सिनेमाघर सा है होता।।
मटके थे रेफ्रिजरेटर उन दिनों के
और सीएफएल की जगह लालटेन था।
गर्मी से जब नींद नहीं आती थी
तब पापा का हाथ पूरी रात पंखा था झेलता।।
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