शनिवार, 18 जुलाई 2020

मृत्यु

सत्कर्म कर या तू कर कुकर्म
मैं मृत्यु हूं मैं हूं अटल।
ना ऊंच नीच का भेद करूं
मेरा उद्देश्य है अविरल।।

जीवन प्रकृति देती है
मैं काल हूं आत्मा हरता हूं।
संसार एक क्षणिक पगडंडी है
उस पथ का गंतव्य मैं ही हूं।।

जिस प्रकार तेरा हो आचरण
वैसा ही अंत तेरा होगा।
ना समझ खुद को अमर कभी तू
मैं मृत्यु हूं, किसी को कभी नहीं छोड़ा।।

दीर्घायु हो या हो अल्पायु
कोई भेद भाव ना इसका मेरे मन में।
अपने जीवित क्षणों को सार्थक बना
और छोड़ अमिट छाप अपनों के हृदय में।।



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