गर्म हवाओं की आंधी हो
या नर्म बूंदों की ठंडक
खुले गगन के साए हों
या अनजानी भीड़ की भगदड़
इक अजनबी राह की तलाश में
निकल पड़ा हूं मैं।
ना मंज़िल की है खबर
और ना रास्ते हैं पता
ना जाने कौन सा मोड़
मुझे ले जाएगा कहां।
ना जाने कब और कहां
रुकेगा ये जंग का कारवां।
मुद्दतों से चाहा
जिस अमन के गुलिस्तां को मैंने पाना
ना जाने कौन से जहां में है
उन कलियों का ठिकाना।
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